Thursday, February 2, 2012

होर्डिंग्स से जुडी अर्थहीन बातें

गाडी में बैठा हुआ, बीती यादों के समंदर में गोते लगाता हुआ और रोज़ मर्रा की उधेड़बुन में पड़ा  हुआ कुछ सोच ही रहा था कि, सहसा नज़र जा पड़ी सड़क के किनारे लगे हुए बड़े बड़े Hordings पे, लगभग सभी एक जैसे, सबका सन्देश  एक, पर सन्देश देने वाली! की तस्वीर अलग. सभी किसी न किसी सोसाइटी की प्रशंसा करते हुए और  जीवन की आदर्श परिभाषा समझाते हुए !


अगर आपको अभी तक सन्दर्भ न समझ आया हो तो एक बार पुणे जरूर आईये, वाकड से Ph-२ जाते हुए आप इन होर्डिंग्स को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते.

सहसा मन में एक विचार कौंधा, क्या इनकी societies में घर लेने भर से कोई जिंदगी भर की ख़ुशी पा जाएगा ..
लेकिन यहाँ प्रश्न ये नहीं है कि घर लेने से क्या होगा बल्कि ये है कि इन होर्डिंग्स की बदौलत और कुछ भले न होता हो, 6 -7Km का सफ़र तो यूँ ही कट जाता है ...

मानो कोई फिल्म चल रही हो और उसका हर दृश्य पिछले से ज्यादा मनमोहक(ध्यान दें) हो ....

एक होर्डिंग पर लिखा था ..(किसी सोसाइटी का Advertisement था )

Car free roads... care free parents ...

इस बात को पढ़ते ही ख्याल आया ..क्या सोचकर किसी ने ये punch line तैयार किया होगा ..लेकिन अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती ...इस बात में छुपी नकारात्मकता ने मेरा ध्यान आकर्षित किया ...मैं तो ऐसे जगह पर कभी मकान न लूँ जहा parents को care free होने की बात कही जाए ।

हर एक होर्डिंग में १/२/३ BHK की कीमत लिखी हुई, और एक जीवन सन्देश ...जैसा शायद आसाराम बापू या श्री रवि शंकर भी १०० वर्ष तपस्या करके भी न दे पाए ...

इनके बीच एक होर्डिंग जो इन सबसे अलग होने की वैसी ही कोशिश करता हुआ जैसा हम सब अपनी रोज़ मर्रा की जिंदगी में करते हैं (ज्यादातर असफल रहते हैं ) ...ये कोई और नहीं अमूल का प्रसिद्द होर्डिंग था, रोज़ के न्यूज़ पेपर से headlines  उठाकर इसे कुछ अपने ही तरह के मसखरे, तैयार करते हैं ...पिछले १ साल में मैंने कई बार इसे बदलते देखा है ...हर बार कुछ विश्व या देश स्तर से जुडी बाते होती हैं ...परन्तु इस बार जो देखा वो १ वर्ष में कभी नहीं देखा ...इस बार मुद्दा किसी देश से नहीं सीधे दिल से जुड़ा था ...इस बार का विषय थी चिकनी चमेली ....शायद इस बार अमूल के so called creative मसखरों ने देश विदेश के मुद्दों से हटकर पहली बार उनके दिल की बात कही है ...सोचता हूँ मुन्नी के बारे में भी कुछ अच्छा ही लिखा होगा ...पर मेरी फूटी किस्मत उस समय तो मैं पुणे में था ही नहीं सो उन देवी के दर्शन न कर पाया 

इन्ही होर्डिंग्स के बीच अपनी लाज बचाता एक मंदिर दीख पड़ा ...जिसके  एक तरफ एक होर्डिंग(खूबसूरत लड़की की तस्वीर के साथ, समझ नहीं पाया की advertisement किसका था बिल्डिंग का या उसका !!) और दूसरी तरफ बला की खूबसूरत दूसरी बाला(उसकी भी वही दास्ताँ) ...
इनके बीच अगर कोई मंदिर को प्रणाम करना भूल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं ...
मुझे तो खुद कई दिनों बाद उस मंदिर का पता चला ...(वो भी तब जब उन दो होर्डिंग्स में एक वह पर नहीं था )

कुछ यूँ ही गाडी चलती रही और मैं दृश्य दर दृश्य एक टक उन बालाओं और जीवन सन्देश को घूरता रहा (हाँ रूचि का अनुपात जरूर ८०% और २०% का था ) ...

सहसा उस दर्दनाक दृश्य का दर्शन हुआ जिसने ये सिध्द कर दिया की हर फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक नहीं होता (शाहरुख़ खान इस ब्लॉग को न ही पढ़े तो बेहतर होगा )
वो दृश्य था मेरी कंपनी की बिल्डिंग :( ...कुछ इस तरह अंत हुआ मेरे खूबसूरत सफ़र  का (जो रोज़ इसी तरह खूबसूरत होती है और अंत में इसी तरह दर्दनाक ...इसी का नाम तो संघर्ष  है )

विशेष टिपण्णी : 
अगर सोचा जाए तो बेकार की बातों में भी कितना अर्थ निकला जा सकता है ...ऐसा ही कुछ यहाँ हुआ है ...

अब से आप सड़क के किनारे की होर्डिंग्स देखे तो उनके आपस में ताल मेल और जीवन सन्देश पर जरूर गौर फरमाए !!

3 comments:

Fakhruddin said...

लेखक महाराज बहुत सुन्दर वर्णन किया है...
एक दिन ऑफिस से वापस लौटते वक़्त सहसा ही मेरी दृष्टि एक hoarding पर पड़ी जिसमे लिखा था garden city और वो hoarding एक बंजर ज़मीन पर लगा था... उस दिन एहसास हुआ की जिंदगी मे कितना contrast है... और वोह निर्लज hoarding मनो उस सूखी हुई ज़मीन को चिड़ा रहा हो...

vipin said...

hahahahahaa ...awesome chitran kiya hai ...! ..thanks by the way

Simran said...

dude... just wana tel u sumthn... well written (n i swear i read the entire thing)...
Simran