Wednesday, February 29, 2012

शेर

यूँ तो करते रहे वो हमसे नफ़रत उम्र भर ....
पर रह न सके वो इक पल भी हमारे बिना !! -विपिन  

Tuesday, February 28, 2012

आज मैंने चाँद देखा !!

आज मैंने चाँद देखा ..

यूँ तो रोज़ ही देखते हैं ..पर आज टेलीस्कोप से देखा ..तो पता चला चाँद पर दाग तो हैं.. 

पर वही उसको और खूबसूरत बनाते हैं ..


थोड़ी सी कमी ही सम्पूर्णता की तलब बढाती है ... 

और खूबसूरत होने का एहसास दिलाती है ..


ये मुझे तब पता चला जब ... 

आज मैंने चाँद देखा !!  


---------------------------------------------------------------------------विपिन 


(इनफ़ोसिस की ओर से तरह तरह के तारों और ग्रहों को देखने के लिए टेलीस्कोप का इंतज़ाम किया गया था 


...और चाँद को देखते ही मैं मानो मंत्रमुग्द्ध हो गया था...वही इक छोटा सा ख्याल आया जो यहाँ 


पेश-ए-खिदमत किया है)

Monday, February 13, 2012

मुहब्बत

बसंत ऋतु को प्यार का समय माना जाता है ...जब बंजर दिल में भी प्रेम-पुष्प  खिल जाता है ...और प्रकृति भी मानो इसको बढ़ावा देती है ...ऐसा खूबसूरत समां बंधता है कि कोई भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह पता ....
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मुहब्बत बड़ी हसीन होती है, दिल का चैन चुरा लेती है
याद रहती है एक ही छवि, और खुद को भुला देती है
जितनी कोशिश चाहे कर लो, भूलने न देती है 
ये वो दर्द है, जो चुभती है, पर मज़ा देती है

लगती है हर बात भली, हर अदा सुहानी लगती है
हर पल इक कविता, हर क्षण, नयी कहानी लगती है 
कभी-कभी कौवे सी कर्कश, कभी कोयल की बानी लगती है 
पल में तो बच्ची के जैसी, पल में एक सयानी लगती है 

कहता है इक टूटा आशिक, दर्द बहुत है सीने में
दर्द न हो गर इस जीवन में तो, ख़ाक मज़ा है जीने में
कहता है इक दीवाना कि,  है नशा बहुत कमीने में
नशा न हो गर मदिरा में तो, ख़ाक मज़ा है पीने में
-----------------------------------------------------------विपिन(१४/०२/२०१२)
(आखिरी paragraph कि पहली २ पंक्तियाँ  मेरे पसंदीदा गाने से ली गयी है...थोड़ी सी बदली जरूर हैं पर बात वही है)



Sunday, February 12, 2012

आज चला हूँ मैं

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~आमुख~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
बहुत हुआ अब और नहीं ... जीवन भर जंजीरों में बंधा रहा अब हौसला होता है ...महसूस होता है कुछ कर जाऊँगा ...गर शिखर पर न पंहुचा तब भी कदम जरूर आगे बढ़ाऊंगा...अब लगता है... कुछ कर जाऊँगा ..

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दिल में लिए कितने अरमान चला हूँ मैं, बंधी है मुट्ठी, छूने आसमान चला हूँ मैं
राह में आये लाख मुश्किलें मगर, हर मुश्किल को करने आसान चला हूँ मैं
हौसले से अब मिली है ताकत, दिल में लिए अपना ईमान चला हूँ मैं
मज़बूत हैं इरादे , पंखो में जान है, भरने परवाज़, लगा जी-जान चला हूँ मैं !!

मजबूर था हालातों से मगर, तोड़ने हर बंधन, हर दीवार चला हूँ मैं !
दिखती है जहा तक ज़मीं, क्या अंत है, जानने उस पार चला हूँ मैं !
वक़्त की ताकत कितनी भी हो मगर,हर ढाल पर करते वार चला हूँ मैं!
बावजूद हल पल बुझती लौ के, लिए दिल में उम्मीदे अपार चला हूँ मैं!

अभी बहुत है दूर, मंजिल पाने की आस में बेताब चला हूँ मैं
बिखरे टुकडो से पैदा कर, सच करने हर ख्वाब चला हूँ मैं
पहले भी उठाये हैं कई सवाल, अब लोगो को करने लाज़वाब चला हूँ मैं
कम न होगा साहस इक कतरा, लिए उल्लास बेहिसाब चला हूँ मैं

जिनसे था  मैं डरता अब तक, बनकर उनका काल चला हूँ मैं
जिनसे थी न मिलती आँखे, कर उनपर आँखे लाल चला हूँ मैं
विघ्न विपत्ति आते जो पथ में,उनको ठोकर से टाल चला हूँ मैं
इच्छा तो है हर कुछ पाने की, यूँ ही सपने पाल चला हूँ मैं 


गूंजेगी हर महफ़िल अब सुर से, लेकर सारे साज़ चला हूँ मैं
जिस माता की गरिमा हूँ मैं, करके उस पर नाज़ चला हूँ मैं
मंजिल पाने की नव विधि का , अब करने आगाज़ चला हूँ मैं
बीती बातों को भूला हूँ, लेकर नवोत्कर्ष आज चला हूँ मैं
----------------------------------------------------------------विपिन (१२/०२/२०१२)

(क्रांतिकारी... जो  हर किसी के अंतर्मन में होता है ...किसी भी बात पर झुंझलाता है ...पर बाहर आने से घबराता है ...जब इसमें बाहर आने की शक्ति आ जाती है तो युग परिवर्तन होता है )





Saturday, February 11, 2012

मेरा मन !!

मन, मानव शरीर का सबसे चंचल तत्व है ...किसी मुश्किल से मुश्किल प्रश्न में भी वो जटिलता नहीं होती जो मन में होती है ...और अस्थिरता में तो इसका कोई सानी नहीं है ...इस पल यहाँ तो उस क्षण  कही और ...
इस कविता में जिस अस्थिरता आप अनुभव करेंगे वो इसी मन का दोष है ...मैं तो एक सारथी हूँ जो रथसवार  के आज्ञा के अनुसार ही रथ चलाता है ....

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चंचल सरिता सा बहता मेरा मन, कल-कल छल-छल करता मेरा मन
जाने किस ओर चला है मेरा मन, जाने किसे ढूढ़ रहा है मेरा मन

पल में खुश तो पल में दुखी, पल में  प्रकट तो पल में अन्तरमुखी 
पल में वृक्ष की शीतल छाया, पल में विशाल प्रज्वलित ज्वालामुखी

कभी वीणा के तार सा झंकृत, कभी नन्हे बालक सा पुलकित
कभी नीले आकाश सा विस्तृत, कभी पुष्प-कली सा संकुचित



हल पर दोलन करता मेरा मन, किसी मृग सा कुलांचे भरता मेरा मन
हर पल स्मृति-सागर में गोते लगाता मेरा मन, किसी नाव सा डूबता उतराता मेरा मन 

किसी आहट को सुनकर ठिठक सा जाता है, राह पर चलते-चलते अचानक भटक सा जाता है
लाख बुलाता हूँ मैं उसको वापस, किसी बीती बात पर अटक सा जाता है

किसी के विषय में हल पल सोचा करता है, किसी बात से हल पल थोडा डरता है
जितना ही मैं बाँधा करता हूँ, उतनी उड़ान ये भरता है



आसमान में उड़ता पक्षी मेरा मन, अनंत की ओर अग्रसित मेरा मन
किसी बंधन में विचलित मेरा मन, किसी विचार से हर्षित मेरा मन

मंजिल को ढूढता और भटकता, किसी गली खो जाता है
भूल सभी ये रिश्ते नाते, फिर तन्हा हो जाता है

निद्रा में ये किसी चित्रकार सा, स्वप्न  संरचित  करता है
जागृत होते ही किसी सुनार सा, विचार सुसज्जित करता है

उलझन के भंवर में घूमता मेरा मन, मस्ती की महफ़िल में झूमता मेरा मन
शब्दों की परिभाषा से परे मेरा मन, जज्बातों की लेखनी से परिभाषित मेरा मन

(ये एक प्रयास था मन को समझने का, जैसा की इस कविता से आपने महसूस किया होगा ....मेरा यह प्रयास एक बार फिर असफल ही रहा ...आखिरी पंक्ति इसी भावना को व्यक्त करती है )
  ------------------------------------------------------------------------------------विपिन 


Monday, February 6, 2012

दिल और दिमाग का अंतर्द्वंद्व

दिन भर के काम के बाद थका हुआ मैं, आराम से बिस्तर में लेटा कोई फिल्म देख रहा था। न जाने क्यूँ कोई खटका सा मन में महसूस हो रहा था...मन ही मन एक अंतर्द्वंद्व  चल रहा था ...फिल्म से ध्यान कब हटा पता ही नहीं चला ...
जरा सा ध्यान  दिया तो पता चला ये दिल और दिमाग के बीच की रस्साकसी है.... दिल अपने तर्क दे रहा है और दिमाग अपने ...दोनों काशी से आये हुए किन्ही विद्वानों की भांति शास्त्रार्थ करने में व्यस्त थे ...मेरा मानना था की हम अपने शरीर को अंगों को नियंत्रित करते हैं ... लेकिन ये दो अंग तो स्वचालित यन्त्र  की तरह ... अपने ही निर्णय पर विकासमान थे ... 
मन इन दोनों के बीच दोलन करता हुआ ... किसी राजा की तरह जो विषय से अनिभिज्ञ सिर्फ विद्वानों के तर्क के अनुसार एक को दूसरे से श्रेष्ठ समझता है और अगले ही क्षण दूसरे विद्वान द्वारा दिए गए तर्क से आश्चर्यचकित  होकर उसे श्रेष्ठ समझने लगता है ... 

दिल के द्वारा दिए गए तर्क बहुधा व्यहवारिकता की सीमा से उसी तरह परे होते हैं जैसे किसी निर्धन के लिए महल के सुख साधन ... दूसरी ओर दिमाग के तर्क उसी तरह संतुलित होते हैं जिस तरह किसी तुला के दोनों पलड़े ..

तथापि दिल का दिया एक क्षीण तर्क भी ..दिमाग के सबसे मजबूत दलील को दरकिनार करने की क्षमता रखता हैं ... ज्यादातर जीत दिल की ही होती है .... इसे ईश्वर का चमत्कार कहा जाए या मानव की दुर्बलता ...

लाख कोशिशो के बाद भी दिल, दिमाग पर हावी होता दीख पड़ता था ...और दिमाग युद्ध में घायल किसी महापराक्रमी योद्धा  की भांति प्रघात की प्रबलता को प्रचंड करता जाता था ..

दिमाग द्वारा दिए गए हर तर्क से मन को एक क्षण की शान्ति मिलती थी और सौतिया डाह से ओतप्रोत  दिल अगले ही क्षण उस शान्ति को उसी प्रकार वाष्पीकृत कर देता था जैसे रेगिस्तान में गिरी जल की एक बूँद को तपती हुई रेत.... फिर भी वर्षो से चली आई रीत है कि दिल का कहा कभी झूठ नहीं होता ... परन्तु उसमे व्यावहारिकता नहीं होती ... दिल उसी प्रकार मूढ़ होता है जिस प्रकार चकोर पक्षी जो स्वाति नक्षत्र की चांदनी रात में ओस कि एक बूँद के लिए हर पल टकटकी लगाये चाँद कि ओर देखता रहता है ... मुझे तो यह प्रतीत होता है कि चकोर भी अपने निर्णय दिल से ही लेता होगा ...अगर दिमाग से लेता होता तो यहाँ उसकी उपमा न दी जाती ..

इसी उहापोह में मन विचलित होने लगा...दोनों ही सही प्रतीत होते हैं ...और दोनों ही हितों कि बात करते हैं बस एक बलिदान कि अपेक्षा रखता है तो दूसरा किसी भी परिस्थिति में लाभ के बारे में सोचता है ...

इस विषय पर कुछ लिखना अत्यंत कठिन है ..क्यूंकि दिल और दिमाग के बीच का वार्तालाप किसी भी भाषा कि सीमा से परे है ...दिल और दिमाग एक ही संयुक्त परिवार में रहने वाले उन दो भाइयों के सामान हैं जो न तो साथ रह सकते हैं और न ही अलग हो सकते हैं ..और मन इनके पिता के सामान है जो दोनों के तर्क सुनता तो अवश्य है परन्तु किसी एक को दूसरे से श्रेष्ठ नहीं कह सकता ....

इसी उधेड़बुन में पड़ा हुआ मैं न जाने कब निद्रा के आगोश में समां गया .... और मेरे साथ दिल और दिमाग भी मन का पीछा उसी भांति छोड़ उठे जैसे कोई बालक मिठाई मिलने के बाद माँ को छोड़ उसे खाने में मग्न हो जाता है ...
रात ही है जो मन के लिए उसकी अपनी है यही वो समय है जब मन, स्वप्न की संरचना करता है ...क्यूंकि सुबह होते ही दिल और दिमाग पुनः मन को किसी वृद्ध पिता की तरह अपने अपने तर्क से व्यस्त कर देंगे ....

Thursday, February 2, 2012

होर्डिंग्स से जुडी अर्थहीन बातें

गाडी में बैठा हुआ, बीती यादों के समंदर में गोते लगाता हुआ और रोज़ मर्रा की उधेड़बुन में पड़ा  हुआ कुछ सोच ही रहा था कि, सहसा नज़र जा पड़ी सड़क के किनारे लगे हुए बड़े बड़े Hordings पे, लगभग सभी एक जैसे, सबका सन्देश  एक, पर सन्देश देने वाली! की तस्वीर अलग. सभी किसी न किसी सोसाइटी की प्रशंसा करते हुए और  जीवन की आदर्श परिभाषा समझाते हुए !


अगर आपको अभी तक सन्दर्भ न समझ आया हो तो एक बार पुणे जरूर आईये, वाकड से Ph-२ जाते हुए आप इन होर्डिंग्स को नज़रंदाज़ नहीं कर सकते.

सहसा मन में एक विचार कौंधा, क्या इनकी societies में घर लेने भर से कोई जिंदगी भर की ख़ुशी पा जाएगा ..
लेकिन यहाँ प्रश्न ये नहीं है कि घर लेने से क्या होगा बल्कि ये है कि इन होर्डिंग्स की बदौलत और कुछ भले न होता हो, 6 -7Km का सफ़र तो यूँ ही कट जाता है ...

मानो कोई फिल्म चल रही हो और उसका हर दृश्य पिछले से ज्यादा मनमोहक(ध्यान दें) हो ....

एक होर्डिंग पर लिखा था ..(किसी सोसाइटी का Advertisement था )

Car free roads... care free parents ...

इस बात को पढ़ते ही ख्याल आया ..क्या सोचकर किसी ने ये punch line तैयार किया होगा ..लेकिन अर्थ का अनर्थ होते देर नहीं लगती ...इस बात में छुपी नकारात्मकता ने मेरा ध्यान आकर्षित किया ...मैं तो ऐसे जगह पर कभी मकान न लूँ जहा parents को care free होने की बात कही जाए ।

हर एक होर्डिंग में १/२/३ BHK की कीमत लिखी हुई, और एक जीवन सन्देश ...जैसा शायद आसाराम बापू या श्री रवि शंकर भी १०० वर्ष तपस्या करके भी न दे पाए ...

इनके बीच एक होर्डिंग जो इन सबसे अलग होने की वैसी ही कोशिश करता हुआ जैसा हम सब अपनी रोज़ मर्रा की जिंदगी में करते हैं (ज्यादातर असफल रहते हैं ) ...ये कोई और नहीं अमूल का प्रसिद्द होर्डिंग था, रोज़ के न्यूज़ पेपर से headlines  उठाकर इसे कुछ अपने ही तरह के मसखरे, तैयार करते हैं ...पिछले १ साल में मैंने कई बार इसे बदलते देखा है ...हर बार कुछ विश्व या देश स्तर से जुडी बाते होती हैं ...परन्तु इस बार जो देखा वो १ वर्ष में कभी नहीं देखा ...इस बार मुद्दा किसी देश से नहीं सीधे दिल से जुड़ा था ...इस बार का विषय थी चिकनी चमेली ....शायद इस बार अमूल के so called creative मसखरों ने देश विदेश के मुद्दों से हटकर पहली बार उनके दिल की बात कही है ...सोचता हूँ मुन्नी के बारे में भी कुछ अच्छा ही लिखा होगा ...पर मेरी फूटी किस्मत उस समय तो मैं पुणे में था ही नहीं सो उन देवी के दर्शन न कर पाया 

इन्ही होर्डिंग्स के बीच अपनी लाज बचाता एक मंदिर दीख पड़ा ...जिसके  एक तरफ एक होर्डिंग(खूबसूरत लड़की की तस्वीर के साथ, समझ नहीं पाया की advertisement किसका था बिल्डिंग का या उसका !!) और दूसरी तरफ बला की खूबसूरत दूसरी बाला(उसकी भी वही दास्ताँ) ...
इनके बीच अगर कोई मंदिर को प्रणाम करना भूल जाए तो कोई आश्चर्य नहीं ...
मुझे तो खुद कई दिनों बाद उस मंदिर का पता चला ...(वो भी तब जब उन दो होर्डिंग्स में एक वह पर नहीं था )

कुछ यूँ ही गाडी चलती रही और मैं दृश्य दर दृश्य एक टक उन बालाओं और जीवन सन्देश को घूरता रहा (हाँ रूचि का अनुपात जरूर ८०% और २०% का था ) ...

सहसा उस दर्दनाक दृश्य का दर्शन हुआ जिसने ये सिध्द कर दिया की हर फिल्म के अंत में सब कुछ ठीक नहीं होता (शाहरुख़ खान इस ब्लॉग को न ही पढ़े तो बेहतर होगा )
वो दृश्य था मेरी कंपनी की बिल्डिंग :( ...कुछ इस तरह अंत हुआ मेरे खूबसूरत सफ़र  का (जो रोज़ इसी तरह खूबसूरत होती है और अंत में इसी तरह दर्दनाक ...इसी का नाम तो संघर्ष  है )

विशेष टिपण्णी : 
अगर सोचा जाए तो बेकार की बातों में भी कितना अर्थ निकला जा सकता है ...ऐसा ही कुछ यहाँ हुआ है ...

अब से आप सड़क के किनारे की होर्डिंग्स देखे तो उनके आपस में ताल मेल और जीवन सन्देश पर जरूर गौर फरमाए !!