Friday, December 11, 2009

एक कविता मेरे Collection से

ये कविता मैंने ... 01/10/06 को मेरे एक अच्छे दोस्त से झगडा होने के बाद लिखा था .... आज सोचता हूँ तो लगता है वो झगडा ....अच्छा था जो हुआ ....वरना ये कविता कैसे जन्म लेती :P ...सोचा था की इससे blog मे न डाला जाए ...लेकिन फिर सोचा तो लगा क्यूँ न दूसरो को भी इस कविता के माध्यम से कुछ message दे दिया जाए...ये मेरा नजरिया है जिंदगी के लिए ...हाँ लेकिन सावधान !! इसे हरगिज़ भी -ve sense मे न लिया जाए आप मे से कई लोग इससे सहमत न हो लेकिन यही सत्य है ....हाँ प्यार और साथी अपनी जगह तो हैं ही !! ;) .... अब आपका ज्यादा वक्त न लेते हुए ...मैं अलविदा लेता हूँ...और छोड़ जाता हूँ ...आपको कुछ मार्मिक पंक्तियों के बीच ...पढ़िए और पसंद आए तो comment जरूर दीजिये .... आख़िर एक Blogger और एक कवि क्या चाहता है ...
थोड़ा सा Appreciation बस !!.....

इस पार खड़ा मैं जीवन तट पर , पाता खुद को एकाकी |
है कोई नहीं जो बन पाए , सुख जाम पिलाने को साकी |
यूँ तो दिखाती चंचल लहरें , चंचल हर पल जीवन नौका |
हर ओरे हिलोरे खाती नौका , आधार नहीं इस जीवन का |
मंदगति से बहती वायु , आभास दिलाती इक साथी का |
हैं सत्य बताते रेत के कड़, सत्य दिखाते इस जीवन का |
है कोई नहीं जो दिखला दे , क्या रह चलेगी यह नौका |
कोई नहीं है जो ला दे , अन्धकार मे प्रकाश सुख दीपक का |

लहरों कि इन बाधाओ को , पार तुझे ही करना है |
जब भी आये व्यवधान मार्ग मे , पतवार तुझे ही भरना है |
जब आया जग मे एकाकी , एकाकी ही मरना है |
जर्जर होती इस नौका का हर छिद्र तुझे ही भरना है |
पाना है मंजिल तुझको , भवसागर को तरना है |

सत्य जानकार भी तू क्यूँ , इस भ्रमजाल मे फंसा हुआ |
है साथ नहीं कोई फिर भी , किस मोहजाल मे कसा हुआ |

मृगमारिचिका बन कोई , अपने पास बुलाता है |
दो पल साथ निभाकर वो , फिर गायब हो जाता है |
फिर हो जाता एकाकी , दुःख का बदल घिर जाता है |
है खड़ा सामने अपार समुद्र , फिर भी तट पर एकाकी पाता है |
------------------------------एक नवोदित कवि (मैं और कौन ;) )

2 comments:

Amit Pundir - Buggz said...

excellent dude, but you didn't give any hint about the person because of you got time to pen down these wonderful lines..


All the Best

Anonymous said...

bahut khub