थोड़ा सा Appreciation बस !!.....
इस पार खड़ा मैं जीवन तट पर , पाता खुद को एकाकी |
है कोई नहीं जो बन पाए , सुख जाम पिलाने को साकी |
यूँ तो दिखाती चंचल लहरें , चंचल हर पल जीवन नौका |
हर ओरे हिलोरे खाती नौका , आधार नहीं इस जीवन का |
मंदगति से बहती वायु , आभास दिलाती इक साथी का |
हैं सत्य बताते रेत के कड़, सत्य दिखाते इस जीवन का |
है कोई नहीं जो दिखला दे , क्या रह चलेगी यह नौका |
कोई नहीं है जो ला दे , अन्धकार मे प्रकाश सुख दीपक का |
लहरों कि इन बाधाओ को , पार तुझे ही करना है |
जब भी आये व्यवधान मार्ग मे , पतवार तुझे ही भरना है |
जब आया जग मे एकाकी , एकाकी ही मरना है |
जर्जर होती इस नौका का हर छिद्र तुझे ही भरना है |
पाना है मंजिल तुझको , भवसागर को तरना है |
सत्य जानकार भी तू क्यूँ , इस भ्रमजाल मे फंसा हुआ |
है साथ नहीं कोई फिर भी , किस मोहजाल मे कसा हुआ |
मृगमारिचिका बन कोई , अपने पास बुलाता है |
दो पल साथ निभाकर वो , फिर गायब हो जाता है |
फिर हो जाता एकाकी , दुःख का बदल घिर जाता है |
है खड़ा सामने अपार समुद्र , फिर भी तट पर एकाकी पाता है |
------------------------------एक नवोदित कवि (मैं और कौन ;) )
2 comments:
excellent dude, but you didn't give any hint about the person because of you got time to pen down these wonderful lines..
All the Best
bahut khub
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