एक अधूरी रचना !
गहन सोच विचार के बाद एक उपाय सूझा की शायद थोडा और सोचने पर कुछ संछिप्त और तार्किक परिभाषा बना सकूँ ... पर ज्यों ज्यों सोचता गया त्यों त्यों मामला और उलझता गया !!
एक विचार तो आया कि ... जिस क्षण में जीवन जीने में आनंद कि अनुभूति हो वो ख़ुशी है ..
उस क्षण सब कुछ अच्छा प्रतीत होता है ... एक उमंग सा महसूस होता है ...
दोस्तों के साथ कुछ पल सड़क के किनारे आइसक्रीम खाना, और इधर उधर कि बकवास करना भी एक अलग ही तरह कि ख़ुशी है ...
यूँ तो दार्शनिक दृष्टिकोण से ऊपर लिखी बात में कुछ भी ठोस तत्व नहीं नज़र आता... पर अनुभूति शुरू ही वहां से होती है जहा दार्शनिक दृष्टिकोण समाप्त होता है ..
इसलिए तो किसी भी अनुभूति को शब्दों कि सीमाओं में नहीं बाँधा जा सकता !
मैं भी कहाँ दार्शनिक दृष्टिकोण के जाल उलझ गया :P
फिर और सोचा तो एक विचार ये भी आया कि ख़ुशी कब और किस बात पर, कितनी होगी इसका कोई मापदंड नहीं है ..
जितना १०० रु पाने में ख़ुशी नहीं मिलती तो वही १०० रु भी अगर किसी जरूरतमंद को दिए जाए तो अपार ख़ुशी का अनुभव होता है। ....
No comments:
Post a Comment